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वक्त का मिज़ाज

हिंदी साहित्य और फ़िल्म के शोखिन लोगोने राजेश खन्ना अभिनीत कर्म फिल्म जरूर देखी होगी । अगर फिल्म नही देखी हो तो ये गाना तो जरूर सुना होगा जो इंटरनेट पर शुरुआती डायलॉग के साथ उपलब्ध है ।  शुरुआती दिनों में नायक और नायिका की जिंदगी बहुत खुशी से गुज़र रही थी । एक बार ऐसी ही खुशी के माहोल में वे कुछ युन्ह बाते करते है।  " काश ये वक्त ठहर जाए...." " वक्त कभी नहीं ठहरता...   "  " अगर ठहरता ना हो तो धीमा तो चल सकता है ना..."  नायिका नायक को पूछती है  और फिर उम्मीद से  ये गाना गाती है । " समय तु धीरे धीरे चल...! "    क्योंकि वो खुशी के पलो को जी भर के जीना चाहती थी ।    फिर वक्त बदला और उन लोगो की जिंदगी में तूफान आया । वो वक्त ऐसा था की मानो समय रुक गया हो ! फिर वही नायिका ये गीत गाती है ।  " समय तू जल्दी जल्दी चल...." !! यहीं तो समय का मिज़ाज है  । अच्छा समय बहुत जल्दी चलता है और गम से भरा धीरे धीरे ...। इसी विषय पर Yash Murad की एक खूब सूरत शायरी पढ़े और औरों को भी पढ़ाए । 

शबाब

आम तौर पर  विजातीय रिस्तो को हुस्न और इश्क का मामला माना जाता इसी बात के समर्थन में  ढेरों शेयर ,शायरी वगैरा और उन पर बने गीत का उदाहरण दिया जा सकता है  मगर अभी में हिंदी सिनेमा के एक ही गीत से काम चला लेता हु क्योंकि मेरा मकसद ऐसे कई उदाहरण देकर इस मान्यता को साबित करना नहीं है ।   

तिनके की तरह गुमराह