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आवारा बादल

हम में से शायद ही ऐसा कोई होगा जिसने आसमान में बादलों को नहीं देखा होगा । जब हवा तेज होती है तब ऐसा लगता की बादल आवारा हो गए है । कई शायरों ने भी आवारा बादल पर बहुत कुछ लिखा है । तो कहने का मतलब है की सभीने  आवारा होने का इल्ज़ाम बादल पर ही लगाया है । क्या कभी किसीने ये  इसके बारे में ज्यादा सोचा है ? जी  हा , डॉक्टर लाखाणी ने सोचा है और बहुत ही अलग सोचा है । इसी पर उन्ही की एक शायरी जरूर पढ़े ।   

यहाँ सबकुछ बे_सबात है ...!

आज के दौर में ज्यादातर पढ़े लिखे लोग कुदरत के नजारों से दूर हो गए है । जिंदगी का ज्यादातर हिस्सा सीमेंट के जंगलों में ही गुज़र जाता है । इसी जंगल में कोई 1BHK में तो कोई 2 या 3BHK + के घोंसले में रहते  है जहां से  कुदरत का नज़ारा देखना बहुत ही मुश्किल है । इसी कारण ही कुदरत का ऑब्जर्वेशन भी नहीं कर पाते है । दरिया और समंदर तो दूर की बात सितारों से भरा आकाश भी देखने को नहीं मिलता है ।    दूसरी तरह ऐसे भी खुश नसीब लोग है जो घर से ही कुदरत के नज़रे का लुत्फ उठा सकते है ,कुदरत का खेल देख सकते है और कुदरत को थोड़ा ज्यादा समझ के कुछ लिख भी देते है !   आज की सूफी शायरी जैसी ही शायरी कुदरत से ही जुड़ी हुई है जो Yash Murad ने लिखी है ।    इस शायरी में कुदरत की वो सच्चाई सामने रखी है जिसे जानने के बाद कोई नास्तिक भी सोच में पड़ जाए ।    आइए पहले वही शायरी को खूब सूरत फोटो के साथ देखते है ।  क्या खूब कहा हैं की इस जिंदगी में कुछ भी कायम नहीं ना दर्द ना खुशी और ना जिंदगी । सबकुछ दरिया की तरह बह जाता है , बादल की तरह उड़ के खो जाता है ।...

शबाब

आम तौर पर  विजातीय रिस्तो को हुस्न और इश्क का मामला माना जाता इसी बात के समर्थन में  ढेरों शेयर ,शायरी वगैरा और उन पर बने गीत का उदाहरण दिया जा सकता है  मगर अभी में हिंदी सिनेमा के एक ही गीत से काम चला लेता हु क्योंकि मेरा मकसद ऐसे कई उदाहरण देकर इस मान्यता को साबित करना नहीं है ।   

असली फूल

तिनके की तरह गुमराह

फिलसुफ

मां की लोरी

किसे यार करे ?

आसमा में कोई नक्श नही

इंसान से परिंदे कई पहलुओं में अलग और आगे है ! इंसान को कुछ मिलों के सफर के लिए भी नकसे की जरूरत पड़ती है ।  यहीं कारण है की इंसान पहले से ही नकसे के सहारे रहा है ,आज तो  उनके ही सहारे जीता है । फर्क इतना है की कागज़ में रहा करता नकसा अब मोबाइल में आ गया है । लोग ड्राइविंग करते समय तो बार बार मोबाइल में नकसा देखते है जैसे बाकी सिदिकी ने बयां किया है ।    "  ab to hotā hai har qadam pe gumāñ ham ye kaisā qadam uThāne lage "    आइए अब थोड़ी परिंदे की बात करते है । क्या कभी परिंदे भटक जाते है ?  दर असल परिंदे की कुछ ऐसी ही कुछ खासियत के लिए  कुछ लिखना चाहता था लेकिन फिर रुक गया । क्यों ?! डॉक्टर लाखानी की ये शायरी मिल गई जिसमें इंसान और परिंदे के बीच का एक बड़ा फर्क  बहुत ही थोड़े शब्दों में समझा दिया है !  आप भी पढ़िए और अच्छी लगे तो दूसरे लोगों को भी ये फर्क समझाइए ,इसे फॉरवर्ड करके ।

जिंदगी की क़ीमत

लम्हे का लुत्फ

Dil ki lakire दिल की लकीर

हाथो की लकीर के बारे में तो बहुत कुछ लिखा गया है मगर क्या कभी किसी ने दिल की लकीर के बारे में लिखा है?! लिखा तो क्या ,शायद ही किसी ने सोचा होगा की दिल पर भी लकीर होती है ! हकीकत में दिल की लकीर साफ दिखती होती है मगर उसे देखने के लिए खास नज़र चाहिए । डॉक्टर मलिक लखानी के पास ऐसी नज़र है जिन पर उसने ये शायरी लिखी है !👇

तो कुछ और होता ...

जिनके आशिक बेशुमार थे हमने उस चांद को चाहा, कोई गुमनाम सितारा चाहा होता तो वो सिर्फ हमारा होता हवाओं ने कश्ती को गुमराह ना किया होता, वोह नहीं तो शायद हमारा कोई और किनारा होता। तुजसे महुब्बत थी इस लिए तेरे सारे जुल्म सह गए, तु कोई गैर होता तो हमारा जवाब भी करारा होता इतने गम ओ हसरतों को सहना नही पड़ता, तेरी ज़िद्द न होती तो कोई और हमारा सहारा होता। अब की बार मौसम ए गुल में भी दिल वीरान रहा तुम होते तो हर मौसम जश्न ए बहारा होता।    ~ Dr. Malik Lakhani 

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