हाथो की लकीर के बारे में तो बहुत कुछ लिखा गया है मगर क्या कभी किसी ने दिल की लकीर के बारे में लिखा है?! लिखा तो क्या ,शायद ही किसी ने सोचा होगा की दिल पर भी लकीर होती है ! हकीकत में दिल की लकीर साफ दिखती होती है मगर उसे देखने के लिए खास नज़र चाहिए । डॉक्टर मलिक लखानी के पास ऐसी नज़र है जिन पर उसने ये शायरी लिखी है !👇
इंसान से परिंदे कई पहलुओं में अलग और आगे है ! इंसान को कुछ मिलों के सफर के लिए भी नकसे की जरूरत पड़ती है । यहीं कारण है की इंसान पहले से ही नकसे के सहारे रहा है ,आज तो उनके ही सहारे जीता है । फर्क इतना है की कागज़ में रहा करता नकसा अब मोबाइल में आ गया है । लोग ड्राइविंग करते समय तो बार बार मोबाइल में नकसा देखते है जैसे बाकी सिदिकी ने बयां किया है । " ab to hotā hai har qadam pe gumāñ ham ye kaisā qadam uThāne lage " आइए अब थोड़ी परिंदे की बात करते है । क्या कभी परिंदे भटक जाते है ? दर असल परिंदे की कुछ ऐसी ही कुछ खासियत के लिए कुछ लिखना चाहता था लेकिन फिर रुक गया । क्यों ?! डॉक्टर लाखानी की ये शायरी मिल गई जिसमें इंसान और परिंदे के बीच का एक बड़ा फर्क बहुत ही थोड़े शब्दों में समझा दिया है ! आप भी पढ़िए और अच्छी लगे तो दूसरे लोगों को भी ये फर्क समझाइए ,इसे फॉरवर्ड करके ।
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