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वक्त का मिज़ाज

हिंदी साहित्य और फ़िल्म के शोखिन लोगोने राजेश खन्ना अभिनीत कर्म फिल्म जरूर देखी होगी । अगर फिल्म नही देखी हो तो ये गाना तो जरूर सुना होगा जो इंटरनेट पर शुरुआती डायलॉग के साथ उपलब्ध है ।  शुरुआती दिनों में नायक और नायिका की जिंदगी बहुत खुशी से गुज़र रही थी । एक बार ऐसी ही खुशी के माहोल में वे कुछ युन्ह बाते करते है।  " काश ये वक्त ठहर जाए...." " वक्त कभी नहीं ठहरता...   "  " अगर ठहरता ना हो तो धीमा तो चल सकता है ना..."  नायिका नायक को पूछती है  और फिर उम्मीद से  ये गाना गाती है । " समय तु धीरे धीरे चल...! "    क्योंकि वो खुशी के पलो को जी भर के जीना चाहती थी ।    फिर वक्त बदला और उन लोगो की जिंदगी में तूफान आया । वो वक्त ऐसा था की मानो समय रुक गया हो ! फिर वही नायिका ये गीत गाती है ।  " समय तू जल्दी जल्दी चल...." !! यहीं तो समय का मिज़ाज है  । अच्छा समय बहुत जल्दी चलता है और गम से भरा धीरे धीरे ...। इसी विषय पर Yash Murad की एक खूब सूरत शायरी पढ़े और औरों को भी पढ़ाए । 

यहाँ सबकुछ बे_सबात है ...!

आज के दौर में ज्यादातर पढ़े लिखे लोग कुदरत के नजारों से दूर हो गए है । जिंदगी का ज्यादातर हिस्सा सीमेंट के जंगलों में ही गुज़र जाता है । इसी जंगल में कोई 1BHK में तो कोई 2 या 3BHK + के घोंसले में रहते  है जहां से  कुदरत का नज़ारा देखना बहुत ही मुश्किल है । इसी कारण ही कुदरत का ऑब्जर्वेशन भी नहीं कर पाते है । दरिया और समंदर तो दूर की बात सितारों से भरा आकाश भी देखने को नहीं मिलता है ।    दूसरी तरह ऐसे भी खुश नसीब लोग है जो घर से ही कुदरत के नज़रे का लुत्फ उठा सकते है ,कुदरत का खेल देख सकते है और कुदरत को थोड़ा ज्यादा समझ के कुछ लिख भी देते है !   आज की सूफी शायरी जैसी ही शायरी कुदरत से ही जुड़ी हुई है जो Yash Murad ने लिखी है ।    इस शायरी में कुदरत की वो सच्चाई सामने रखी है जिसे जानने के बाद कोई नास्तिक भी सोच में पड़ जाए ।    आइए पहले वही शायरी को खूब सूरत फोटो के साथ देखते है ।  क्या खूब कहा हैं की इस जिंदगी में कुछ भी कायम नहीं ना दर्द ना खुशी और ना जिंदगी । सबकुछ दरिया की तरह बह जाता है , बादल की तरह उड़ के खो जाता है ।...

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