हम में से शायद ही ऐसा कोई होगा जिसने आसमान में बादलों को नहीं देखा होगा । जब हवा तेज होती है तब ऐसा लगता की बादल आवारा हो गए है । कई शायरों ने भी आवारा बादल पर बहुत कुछ लिखा है । तो कहने का मतलब है की सभीने आवारा होने का इल्ज़ाम बादल पर ही लगाया है । क्या कभी किसीने ये इसके बारे में ज्यादा सोचा है ? जी हा , डॉक्टर लाखाणी ने सोचा है और बहुत ही अलग सोचा है । इसी पर उन्ही की एक शायरी जरूर पढ़े ।
हिंदी साहित्य और फ़िल्म के शोखिन लोगोने राजेश खन्ना अभिनीत कर्म फिल्म जरूर देखी होगी । अगर फिल्म नही देखी हो तो ये गाना तो जरूर सुना होगा जो इंटरनेट पर शुरुआती डायलॉग के साथ उपलब्ध है । शुरुआती दिनों में नायक और नायिका की जिंदगी बहुत खुशी से गुज़र रही थी । एक बार ऐसी ही खुशी के माहोल में वे कुछ युन्ह बाते करते है। " काश ये वक्त ठहर जाए...." " वक्त कभी नहीं ठहरता... " " अगर ठहरता ना हो तो धीमा तो चल सकता है ना..." नायिका नायक को पूछती है और फिर उम्मीद से ये गाना गाती है । " समय तु धीरे धीरे चल...! " क्योंकि वो खुशी के पलो को जी भर के जीना चाहती थी । फिर वक्त बदला और उन लोगो की जिंदगी में तूफान आया । वो वक्त ऐसा था की मानो समय रुक गया हो ! फिर वही नायिका ये गीत गाती है । " समय तू जल्दी जल्दी चल...." !! यहीं तो समय का मिज़ाज है । अच्छा समय बहुत जल्दी चलता है और गम से भरा धीरे धीरे ...। इसी विषय पर Yash Murad की एक खूब सूरत शायरी पढ़े और औरों को भी पढ़ाए ।
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