हम में से शायद ही ऐसा कोई होगा जिसने आसमान में बादलों को नहीं देखा होगा । जब हवा तेज होती है तब ऐसा लगता की बादल आवारा हो गए है । कई शायरों ने भी आवारा बादल पर बहुत कुछ लिखा है । तो कहने का मतलब है की सभीने आवारा होने का इल्ज़ाम बादल पर ही लगाया है । क्या कभी किसीने ये इसके बारे में ज्यादा सोचा है ? जी हा , डॉक्टर लाखाणी ने सोचा है और बहुत ही अलग सोचा है । इसी पर उन्ही की एक शायरी जरूर पढ़े ।
इंसान से परिंदे कई पहलुओं में अलग और आगे है ! इंसान को कुछ मिलों के सफर के लिए भी नकसे की जरूरत पड़ती है । यहीं कारण है की इंसान पहले से ही नकसे के सहारे रहा है ,आज तो उनके ही सहारे जीता है । फर्क इतना है की कागज़ में रहा करता नकसा अब मोबाइल में आ गया है । लोग ड्राइविंग करते समय तो बार बार मोबाइल में नकसा देखते है जैसे बाकी सिदिकी ने बयां किया है । " ab to hotā hai har qadam pe gumāñ ham ye kaisā qadam uThāne lage " आइए अब थोड़ी परिंदे की बात करते है । क्या कभी परिंदे भटक जाते है ? दर असल परिंदे की कुछ ऐसी ही कुछ खासियत के लिए कुछ लिखना चाहता था लेकिन फिर रुक गया । क्यों ?! डॉक्टर लाखानी की ये शायरी मिल गई जिसमें इंसान और परिंदे के बीच का एक बड़ा फर्क बहुत ही थोड़े शब्दों में समझा दिया है ! आप भी पढ़िए और अच्छी लगे तो दूसरे लोगों को भी ये फर्क समझाइए ,इसे फॉरवर्ड करके ।
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